मैं एक चलती हुई बस में सवार हूँ
जो दौड़ रही है
देश की राजधानी की सड़कों पर
शायद ये वही बस है
जिसमे कुछ दरिन्दों ने
बलात्कार किया था
एक मासूम लड़की के साथ
शायद मैं रक्त से सनी
उसी बस में बैठा हूँ
मैं बैठा हूँ
शायद उसी सीट पर
जिस पर बैठी होगी वह मासूम लड़की
शायद मैं बैठा हूँ
उस सीट पर
जिस पर बैठे होंगे दरिन्दे
या फिर शायद उस सीट पर
जिस पर बैठा होगा ड्राइवर
बाहर घुप्प अँधेरा है
बस दिल्ली से बाहर निकल आई है
वह किसी दूसरे राज्य की सीमा में
दौड़ रही है इस वक़्त
फिर दूसरे से तीसरे
और तीसरे से चौथे ....
अरे ! यह क्या !!!
यह तो किसी दूसरे ही
मुल्क की सरहद में घुस गई है
पता नहीं कितना रास्ता
तय कर चुकी है यह बस
पर इतना पता है
कि सड़क के दोनों ओर उगे झुरमुटों
और जंगल से
सिर्फ़ चीख़ें सुनाई दे रहीं हैं
तमाम चौराहों के सिग्नल ग्रीन हैं इस वक़्त
चीख़ों से भरी
अन्धेरे में दौड़ती
इस बस का स्टेयरिंग
मेरे हाथ में है ।