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एक छाप चेहरे पर अंकित / नईम
Kavita Kosh से
एक छाप चेहरे पर अंकित कर गया समय!
निकल गईं हाथों से
अंधों की संतानें,
धरती की छाती पर
शापग्रसित चट्टानें;
मणि अपनी खोकर भी दंशित कर गया समय!
अपना ही बीज, किंतु
बोकर के भूल गए,
आँचल भर-भर लाए
जंगली बबूल नए;
अपना-सा होकर भी शंकित कर गया समय!
परछाँई शिला हुई
अणु के विस्फोटों से।
विसूवियस बह निकले
आदम की चोटों से;
सहज भाव होने से वंचित कर गया समय,
एक छाप चेहरे पर अंकित कर गया समय!