भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक छोटा-सा निमन्त्रण / यानिस रित्सोस / सारा कफ़ातू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ, इन चमकते हुए तटों पर आओ — वह अपने से बुदबुदाया—
यहाँ देखो, जहाँ रंग उल्लास में दमकते हैं
एक ऐसी जगह, जो राजसी लोगों के प्रदूषण से मुक्त है
जहाँ उनकी खिड़की-बन्द गाड़ियाँ नहीं हैं, उनके सरकारी दूत नहीं हैं
जल्दी करो, कहीं कोई मुझे देख न ले — वह फुसफुसाया—
मैं रात से निकला हुआ एक भगोड़ा हूँ
अन्धेरे से आया हुआ एक चोर ।
सूर्य से भरी हुई मेरी जेबें
और मेरी कमीज़ —

आओ, मेरा वक्ष जल रहा है और मेरे हाथ —
इसे ले जाओ ।
और एक बात है जो मुझे तुमसे कहनी है
जिसे मुझे भी नहीं सुनना चाहिए ।
पूर्वजों की क़ब्रें
हमें अपने मृतकों की रक्षा करनी चाहिए, उनकी सामर्थ्य की —
जिससे कि हमारे शत्रु
किसी दिन उन्हें खोदकर अपने साथ ले न जाएँ ।
उनके बग़ैर हम दोहरे ख़तरे से घिर जाएँगे । हम
अपने घरों, अपने फ़र्नीचर, अपने खेतों के बग़ैर कैसे रहेंगे ? —
ख़ासकर अपने पूर्वजों की क़ब्रों के बग़ैर; योद्धाओं, विद्वानों के बग़ैर ?
याद करें, कैसे स्पार्टा के लोगों ने तेजिया ओरस्तेस की हड्डियाँ चुराईं थीं ।
हमारे शत्रुओं को कभी यह पता न चले कि हमने उन्हें कहीं दफ़नाया है ।
लेकिन हम कैसे ये जानेंगे कि हमारे शत्रु कौन हैं ।
वे कब आ रहे हैं, वे कहाँ से आ रहे होंगे ?

इसलिए कोई भव्य स्मारक नहीं, कोई लम्बी-चौड़ी साज-सज्जा नहीं ।
इससे उनका ध्यान खिंचेगा, उनमें ईर्ष्या जागेगी —
हमारे मृतकों के लिए यह सब ज़रूरी नहीं । बस, सादगी, पवित्रता, ख़ामोशी,
उन्हें शहद, अगरबत्ती और खोखले कर्मकाण्ड नहीं चाहिए।
बल्कि एक सादा पत्थर ही काफ़ी है, जिरैनियम का एक गमला, —
एक गुप्त संकेत, या फिर कुछ नहीं । —
एहतियात के लिए हम उन्हें अपने दिलों में रख सकते हैं,
रख सकें तो ।
बेहतर हो हम भी न जान पाएँ कि उन्हें कहाँ दफ़नाया गया है ।
इन दिनों जैसा चल रहा है — क्या पता ?
किसी दिन हम ख़ुद ही उन्हें खोदकर निकाल दें और कहीं दूर
फेंक दें ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सारा कफ़ातू