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एक छोटी आयु जी ली हमने / सुनीता जैन

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एक छोटी आयु जी ली हमने
आते-आते पास
निकट से निकटतर
पाते अपर में
निज को ही
जड़ों से पक्के बँध गये थे हाथ

आज-पर आज,
किस हथेली ने दिये
नक्षत्र सारे ढाँप
द्वार साँकल सब खुले
पर हवा आती नहीं
गन्धा रही भीतर उमस
खनक-खनक कर
गिर रहे विश्वास।