भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक छोटी आयु जी ली हमने / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
एक छोटी आयु जी ली हमने
आते-आते पास
निकट से निकटतर
पाते अपर में
निज को ही
जड़ों से पक्के बँध गये थे हाथ
आज-पर आज,
किस हथेली ने दिये
नक्षत्र सारे ढाँप
द्वार साँकल सब खुले
पर हवा आती नहीं
गन्धा रही भीतर उमस
खनक-खनक कर
गिर रहे विश्वास।