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एक ज़माना हो चुका / ओक्ताई रिफ़ात / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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हर पेड़ के पीछे से तुम आती थी
इतने बेशुमार कि मैं कभी अकेला नहीं रहा,
और तुम्हारी मतवाली चाल के झोंके के बीच
किले के खिलाफ़ मसखरे सी मेरी कोशिश बेकार रही ।

हर सड़क के मोड़ पर तुम मुझसे मिली,
इस क़दर ग़ायब कि मैं चीख उठा, ख़ुद को खो बैठा ।
प्राचीन समुद्रों जैसे बादलों के बीच
तैरते पत्थर तुम्हारे ख़ून से घिसते गए ।

अफ़सोस ! बेशुमार तुम ग़ायब हो गई
मानो ऐसे वक़्त में जो कभी रहा ही नहीं ।
झुककर मैंने धरती से आसमान को उठा लिया,
आसमान, बेपरवाह तुमने जिसे गिरा दिया था, गिरा दिया था ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य