Last modified on 19 अगस्त 2018, at 22:04

एक जाए-अमान बाक़ी है / ईश्वरदत्त अंजुम

एक जाए-अमान बाक़ी है
अब भी इक आस्तान बाक़ी है

छीन सकती नहीं उसे दुनिया
सायाए-आसमान बाक़ी है

जख़्म तुम ने दिया था जो दिल को
अब भी उस का निशान बाक़ी है

पूछता है वो खंजरे-ख़ू-रेज़
क्या कोई सख़्त जान बाकी है

उस से भी कामयाब आऊंगा
आखिरी इम्तिहान बाक़ी है

दास्तां खत्म हो चुकी कब की
फिर भी लुत्फ़े-बयान बाक़ी है

ये बुज़ुर्गों का कॉल है बरहक़
जान है तो जहान बाक़ी है

उस रहीमो-करीम का 'अंजुम'
शुक्र है आस्तान बाक़ी है।