भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक जाए-अमान बाक़ी है / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
एक जाए-अमान बाक़ी है
अब भी इक आस्तान बाक़ी है
छीन सकती नहीं उसे दुनिया
सायाए-आसमान बाक़ी है
जख़्म तुम ने दिया था जो दिल को
अब भी उस का निशान बाक़ी है
पूछता है वो खंजरे-ख़ू-रेज़
क्या कोई सख़्त जान बाकी है
उस से भी कामयाब आऊंगा
आखिरी इम्तिहान बाक़ी है
दास्तां खत्म हो चुकी कब की
फिर भी लुत्फ़े-बयान बाक़ी है
ये बुज़ुर्गों का कॉल है बरहक़
जान है तो जहान बाक़ी है
उस रहीमो-करीम का 'अंजुम'
शुक्र है आस्तान बाक़ी है।