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एक जो चादर हमें दे दी गई है / हरीश भादानी

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एक जो चादर हमें दे दी गई है
किसी भी एक कोने से
इसकी सीवन उधेड़ें
देखें कि.....
कितने जोड़
कैसे सून के धागे
कि यह हमारी नग्नताओं को
सम्पूर्णता के साथ
ढाँपती भी है या नही;
एक यह पोथी युग-बोध की
जो हमें पढ़ने-समझने
और जीने को दे दी गई है
देखें कि-
इसके शब्द कितने जिन्दा हैं,
कितने अपाहिज हैं
और कितनों पर ताबूत के ढक्कन लगे हैं
और जितने बोलते हैं
इनका अर्थ
हमारे शब्द-कोष में है या नहीं
नहीं है तो ?
आओ, अस्वीकारें हम इन्हें सम्पूर्णता के साथ
जीने के लिये तो
सिर्फ धरती ही बहुत है !