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एक तरफ कुहरा / रामस्वरूप 'सिन्दूर'
Kavita Kosh से
एक तरफ कुहरा ही कुहरा, एक तरफ़ हैं हम!
अंतर्मन सूरज-सूरज, आँखें शबनम-शबनम!
घाटी के तल से अम्बर तक
जल के रंग भरे,
ज्यों समुद्र मारे उछाल
शिखरों को पार करे,
एक तरफ़ जग गूंगा-बहरा, एक तरफ़ सरगम!
अंतर्मन सूरज-सूरज, आँखें शबनम-शबनम!
तन निर्झरी राह पर बहके
फिसल-फिसल सँभले,
तप्त देह पर मेघ-बसे
क्षण के फेनिल हमले,
एक तरफ़ तम दुहरा-तिहरा, एक तरफ़ पूनम!
अंतर्मन सूरज-सूरज, आँखें शबनम-शबनम!
झील डूब चेतन में
उभरी है अवचेतन में,
गत के साथ अनागत झाँका
स्वप्निल दर्पण में,
एक तरफ़ सब ठहरा-ठहरा, एक तरफ़ उदगम
अंतर्मन सूरज-सूरज, आँखें शबनम-शबनम!