भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक ताल, एक दर्पण / भाग १ / सुभाष काक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(१९९९, "एक ताल, एक दर्पण" नामक पुस्तक से)


जैसे फूल की गिरती पंखडी

शाखा को लौटे

ऐसी थी तितली की उडान।

शरद की झंझानिल में

व्याघ्र और हरिण

साथ ठिठुरे।

मध्याह्न की गर्मी में

जल से भाप उठी,

पुराना संगीत

कान में गूंजा --

ताल ही दर्पण है।

झांझा अति पीडित

तितली नहीं बनेगा।

फुलवारी के शृंगार

और पक्षियों के कोलाहल के मध्य

देखो पीपल का धैर्य।

लगता है तरबूज़ को नहीं मालूम

रात तूफान आया।

चांद को देखते देखते

मेरी गर्दन दुखियाई।


वसन्त का पहला गीत गाते

पक्षी शर्माता है।

कितने तीर्थ जाकर

आकाश गंगा

उतनी ही दूर।

१०

यात्रयों के साथ

पक्षी भी डेरा डाले।

११

पुरुष बैठे करे ध्यान--

कठोर परिश्रम।

१२

डाकू साधूवेश में हैं

कवि ने

तलवार बान्धी है।

१३

मैं हंस से खेलने चला

पर उसकी उडान से

डर गया।


१४

चिडियाघर के पिंजरे

का भालू

मुझे भाई लगा।

१५

दर्पण में बिम्ब

धुंधलाता है।

१६

इस रात देर

मेरा साथ कौन जगा है?

१७

मैना ऐसे गाये

जैसे पिंजरे में है ही नहीं।

१८

विशैले छत्रक

सुन्दर लगते हैं।

१९

पक्षी की कूक सुनकर

जल में चन्द्रमा हिला।

२०

चन्द्रमा दौड रहा

एक मेघ से दूसरी ओर।

२१

अरुषी ने ओस के बिन्दु को

अंगुली में पकडना चाहा।

२२

सुन्दर है

पतझड की शाम का चन्द्र

जीवन की शाम में।

२३

तितलियां इधर उधर भाग रहीं

बीते वसन्त को ढूंढतीं।


२४

पाला और भीषण पडा

अब पुष्प नहीं खिलेंगे।

२५

काश गिरती बर्फ पर

तितलियां मंडरातीं

कैसा गातीं वह।

२६

चोर ने हार चुराया

पर चन्द्रमा मेरी खिडकी के बाहर

से नहीं भागा।

२७

मछलियां

गिरते फूलों के डर से

चट्टान नीचे छिप गईं।

२८

श्मशान में

बहुतेरी सुन्दरियों की अस्थियां हैं।

२९

गर्मी की रात

पिंजरे का कोई पक्षी

नहीं सोया।

३०

सुन्दर है

शरद चन्द्रमा

पर हमारी खिडकियां बन्द हैं।

३१

अरुषी बहुत रोई

पूर्ण चन्द्रमा के लिये।

३२

तूफान के झोंके पर बैठी

मन्दिर की घण्टी की आवाज़

चली आई।

३३

बिन जाने कैसे समझूं

ग्रन्थ मैं लौटाता हूं।

३४

पतंग पर किरणें हैं

जब ताल पर अंधेरा आ चुका।

३५

तूफान में कुत्ते

गिरते पत्तों पर भौंक रहे।

३६

प्रकाश

बिम्ब बिम्ब का प्रतिरूप

रूप रूप का प्रतिबिम्ब।

३७

सुन्दरता क्या निहारूं

वसन्त के पग

निरन्तर दूर हो रहे।

३८

कौवे शोर मचा रहे

कि कोकिला को सुन न पाएं।

३९

मां कि गोद में सुरक्षित

भिखारी बच्चे को क्या मालूम

ठंड कितनी है।

४०

चिडिया घोंसला बनाए

पेड पर, कैसे बताएं

पेड कटने वाला है।