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एक था तोता / अनुभूति गुप्ता

एक था तोता, मिटठू राजा,
बजा रहा है मुख से बाजा।
पिंजरे में है प्यारा झूला,
खुशियों से है कितना फूला।
टाँय टू, टाँय टू, गाना गाता,
उसका सुर है बहुत सुहाता।
घर वालों का बहुत चहेता,
राम-राम ये सबको कहता।
खुल गया जब दरवाजा,
मिटठू राजा बाहर आया,
आसमान की ओर निहारा,
फिर निज पंखो को फैलाया।
उसको नीला नभ था भाया।।
इतने में आया इक बच्चा,
मन का था जो सीधा-सच्चा।
उसने मिट्ठू को ललचाया,
तोता भी लालच में आया
पिंजड़े में फिर बन्द कर दिया।
अब तोता मन में पछताया।।