एक दिन, उतने दिन / नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती
एक दिन सब कुछ छोड़कर चला जाऊँगा
सारा प्यार, सारी घृणा, सब बातें
समस्त नीरवता, सारी रुलाई
कील निकले दरवाज़े,
फूट गए माथे की रक्तराशि
एक दिन दोनों पैरों से ठेलकर
चला जाऊँगा।
एक दिन सब कुछ छोड़कर ... एक दिन
सब कुछ दोनों पैरों से ठेलकर
चला जाऊँगा,
तुम्हारे पास अनन्तकाल तक रहने तो आया नहीं हूँ
अनन्तकाल तक सोने की मोहरें या फिर
ताँबे के पैसों को जमा करने के लिए
नहीं आया हूँ,
यह तो तुम भी जानते हो
जानते हुए भी तुमने
उँगली उठाकर मुझे क्यों शाप दिया!
नीम की पत्ती
दाँतों तले क्यों काटी अकस्मात!
थोड़े-बहुत दिनों की छुट्टी लेकर आया हूँ
छुट्टियाँ ख़त्म होते ही चला जाऊँगा,
ओ पेड़, उन थोड़े-से दिन
तुम छाया दो मुझे
ओ नदी, उन थोड़े-से दिन
तुम पानी दो मुझे
उन थोड़े-से दिनों के लिए ठहर जाओ
काँपते होंठों का अभिमान लिए
जो मेरे सामने बैठा है
ठहरो, जिसने मेरे पीठ-पीछे
बन्दूक तान रखी है।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी