भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन अपरिचित होगा प्यार / रमेश ऋतंभर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम कहाँ-कहाँ नहीं गए मित्र
तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढ़ा
पृथ्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक
तलाशते रहे हम तुम्हें
लेकिन शताब्दियाँ गुजर गयीं
तुम कहीं नहीं मिले मित्र
मिलीं तो सिर्फ़
शताब्दियों बाद संग्रहालय में रखी
तुम्हारी पुरानी डायरी
और मेरे नाम लिखी
बिना पोस्ट की गयीं कुछ चिट्ठियाँ
जिसमें तुमने लिखा था
मेरे लिए
सिर्फ़ एक ही शब्द
 'प्यार'
जिसे पढ़कर लोग पूछ रहे थे
एक-दूसरे से अर्थ
(अचकचाये-से)
जो उनकी दुनिया के लिए नितांत
अपरिचित था।