एक दिन आएगा, मैं हो जाऊँगा ग़ायब
और ये कमरा हो जाएगा ख़ाली
सब सामान वैसा ही रहेगा साहिब
मेज़, कुर्सी, देवछवि, वही पुरानी वाली
उसी तरह उड़कर आएगी कमरे में
रंग-बिरंगी तितली, रेशमी, सुन्दर रंगीली
फड़फड़ाएगी, सरसराएगी औ’ सिहरेगी
जगमगाएगी कमरे की छत पर नीली
और आकाश ऐसे ही नीचे उतर आएगा
खुली खिड़की से दिखेगा अनन्त औ’ अपार
नीला सपाट समुद्र हमें इशारे कर बुलाएगा
दिखाएगा अपना दूर तक फैला हुआ विस्तार
(1903)
रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
अब पढ़िए रूसी भाषा में मूल कविता
Иван Бунин
Настанет день
Настанет день — исчезну я,
А в этой комнате пустой
Все то же будет: стол, скамья
Да образ, древний и простой.
И так же будет залетать
Цветная бабочка в шелку —
Порхать, шуршать и трепетать
По голубому потолку.
И так же будет неба дно
Смотреть в открытое окно
И море ровной синевой
Манить в простор пустынный свой.
1916