भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक दिन मेरी मान लो यूँ ही / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
एक दिन मेरी मान लो यूँ ही ।
मैं कहूँ और तुम सुनो यूँ ही ।।
कौन कहता है उसपे ग़ौर करो
मेरी फ़रियाद सुन तो लो यूँ ही ।
काम क्या बेसबब नहीं होता
मेरी दुनिया में आ बसो यूँ ही ।
देख तो लो मज़ा भी है इसमें
तुम किसी से वफ़ा करो यूँ ही ।
मैं न बदलूँगा तुम न बदलोगे
यूँ अगर है तो फिर चलो यूँ ही ।
सोज़ क्या और तुमसे होना है
शेर कहते रहा करो यूँ ही ।।