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एक दिन मेरी मान लो यूँ ही / कांतिमोहन 'सोज़'

एक दिन मेरी मान लो यूँ ही ।
मैं कहूँ और तुम सुनो यूँ ही ।।

कौन कहता है उसपे ग़ौर करो
मेरी फ़रियाद सुन तो लो यूँ ही ।

काम क्या बेसबब नहीं होता
मेरी दुनिया में आ बसो यूँ ही ।

देख तो लो मज़ा भी है इसमें
तुम किसी से वफ़ा करो यूँ ही ।

मैं न बदलूँगा तुम न बदलोगे
यूँ अगर है तो फिर चलो यूँ ही ।

सोज़ क्या और तुमसे होना है
शेर कहते रहा करो यूँ ही ।।