भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक दुनिया रचें / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
एक दुनिया रचें आओ हम प्यार की ।
जिसमें ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हों संसार की ।
एक धरती ने हमको दिया है जनम,
एक धरती के बेटे हैंहम, मान लें ।
अजनबी हों भले हाथ अपने मगर
गर्मियाँ एक-दूजे की पहचान लें ।
तोड़ डालें ये दीवारें बेकार की
एक दुनिया रचें आओ हम प्यार की ।
धूप गोरी है क्यों, रात काली है क्यों
इन सवालों का कुछ आज मतलब नहीं,
बाँट दें जो बिना बात इंसान को
उन ख़यालों का कुछ आज मतलब नहीं,
जोड़ कर हर कड़ी टूटते तार की,
एक दुनिया रचें आओ हम प्यार की ।