भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दुश्म‍न की स्मृति को / बरीस स्‍लूत्‍स्‍की

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा एक दुश्‍मन मर गया है
लगातार मेरी तरफ़ तनी रहती है उसकी बन्दूक ।
पहले मेरे सौ दुश्‍मन थे
अब रह गए हैं निन्‍यानवे ।

मर गया है दुश्‍मन ! दूसरों से कम नहीं था दुष्‍ट वह ।
मेरी अपनी भी हालत अब कुछ ठीक नहीं ।
मुझे दिल से अफ़सोस है उसका
वैसे भी सौ अच्‍छी संख्‍या है निन्‍यानवे से ।

कितने साल हम एक साथ रहे !
अब वह अकेला चल दिया रात की ओर ।
वहाँ उसका मन मेरे बिना नहीं लगेगा ।
मेरे दिल का भी जैसे बन्द हो गया है द्वार ।