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एक देश एक मंत्र / प्रेमलता त्रिपाठी

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द्वंद्व मुक्त वीत राग।
धर्म कर्म से न भाग।

पुण्य पंथ संप्रदाय,
धारणा बने न आग।

एक देश एक मंत्र,
एकता करें न त्याग।

बोध क्यों अबोध हंत,
दंश दे विचार नाग।

खेद है न रंच मात्र,
क्यों बढ़ा विकार बाग।

दीन हीन अंत व्याधि,
प्रेम योग हो न स्वाँग