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एक धुँधला सुबह का तारा लगा तो क्या हुआ / प्राण शर्मा


एक धुँधला सुबह का तारा लगा तो क्या हुआ
गर मुसाफ़िर कुछ थका-हारा लगा तो क्या हुआ

चाँद-तारों की तरह न्यारा लगा तो क्या हुआ
हर बशर मुझको बड़ा प्यारा लगा तो क्या हुआ

ए मेरे साथी, चलो कुछ प्यास तो अपनी बुझी
पानी सागर का अगर खारा लगा तो क्या हुआ

काश, उसके दिल के अन्दर झांक कर तुम देखते
देखने में कोई हत्यारा लगा तो क्या हुआ

"प्राण" मैं चलता रहा इसको उठा कर हर तरफ
ज़िंदगी का बोझ कुछ भारा लगा तो क्या हुआ