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एक नदी का निर्वासन / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें भेजता हूँ
अपनी नदी की स्मृति
सहेजना इसे
वितस्ता है
कभी यह बहती थी
मेरी प्यारी मातृभूमि में
अनादि काल से
मैं तैरता था
एक जीवन्त सभ्यता की तरह
इसकी गाथा में
अब बहती है निर्वासन में
मेरे साथ-साथ
कभी शरणार्थी कैम्पों में
कभी रेल यात्रा में
कभी पैदल
कहीं भी
रात को सोती है मेरी उजड़ी नींदों में
नदी बहती है मेरे सपनों में
शिराओं में मेरी
इसकी पीड़ाएँ हैं
काव्य सम्वेदनाएँ मेरी
और मेरे जैसों की
मैं तुम्हें भेजता हूँ स्मृतियाँ
एक जलावतन नदी की