सब पत्ते विदा हो लेंगे
गिलहरियाँ भी कहीं और चली जाएँगी
चीटियाँ भी जगह बदल देंगी
और सुग्गे नहीं आएँगे इस तरफ़
फिर कभी
न बारिश
न हवा
न धूप
बस घने कुहरे के बीच झूल जाऊँगा मैं
किसी दिन
अपनी ही पीठ में
ख़ंजर की तरह धँसा हुआ
सबकी स्मृतियों में !