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एक पेड़ का दु:ख / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
सब पत्ते विदा हो लेंगे
गिलहरियाँ भी कहीं और चली जाएँगी
चीटियाँ भी जगह बदल देंगी
और सुग्गे नहीं आएँगे इस तरफ़
फिर कभी
न बारिश
न हवा
न धूप
बस घने कुहरे के बीच झूल जाऊँगा मैं
किसी दिन
अपनी ही पीठ में
ख़ंजर की तरह धँसा हुआ
सबकी स्मृतियों में !