भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक पेड़ चाँदनी / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने
ढिबरी की लौ
जैसी लीक चली आ रही
बादल का रोना है
बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..।।
तन कातिक मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में.. ।।
नदी, झील सागर से
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहाँ वहाँ छोड़ना
मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने.. ।।
एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने ।