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एक बर्फ़ीली शाम को वन के किनारे / रॉबर फ़्रास्ट / चित्रांश वाघमारे

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ये वन किसके है, शायद मुझे पता है
यहीं गाँव मे घर है, वह उसमें रहता है
कब उसे ज्ञात होगा मैं यहाँ रुका था ?
और इन्हें बर्फ़ से ढँका हुआ देखा था !

अश्व सोचता होगा मैं कितना अजीब हूँ
आसपास कोई सराय भी नही और मैं
 एक निविड़ वन और बर्फ़ सी जमी झील के
 ठीक बीच आकर ठहरा हूँ —
 साल की सबसे घनी और काली संध्या को !

कुछ झिंझोड़कर अपनी गर्दन वह कहता है
आज यहाँ आकर शायद कुछ ग़लती कर दी !
आती है आवाज़ हवा सरसरा रही ज्यों
आती है आवाज़ हिमकणों के झरने की !

वन प्यारे और अन्धेरे हैं, गहरे हैं
कुछ वचन किन्तु मेरे मन में ठहरे हैं
इस वन के आगे, पार उतर जाना है
सोने से पहले बहुत मुझे पाना है —

सोने से पहले बहुत मुझे पाना है !

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : चित्रांश वाघमारे

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                      ROBERT FROST
       Stopping by Woods on a Snowy Evening

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound’s the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.