एक बिन्दु पर मोड़ लिया मैंने मन
पल-पल करता हुआ तुम्हारा चिन्तन
गिरी प्रेम की तड़ित कड़क कर सिर पर
रहा उतार जलन जलने की तुम पर
शून्य शून्य-सा रहित विशेषों से बन
एक बिन्दु पर मोड़ लिया मैंने मन
सीख लिया चलना लपटों के ऊपर
बिना बुझे ही जलना पिघल-पिघल कर
आत्मसात्कर दिग्विराट का दर्शन
एक बिन्दु पर मोड़ लिया मैंने मन