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एक बूँद शब्द / सरोज परमार
Kavita Kosh से
जब भी होठों एक क़टोरों से
उबलता हुआ
एक बूँद शब्द
जीवन की ढलान पर
फिसल जाता है
में बहुत निरीह हो उठती हूँ
फिर(अपनी नज़र में)
आस्था की पसली बह निकलती है।