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एक बेरोजगार की प्रार्थना / रणजीत
Kavita Kosh से
हे प्रभु !
शरण तुम्हारी आया हूँ मैं
मुझको कोई काम दिला दो
किसी नगर में, किसी गाँव में
किसी कारखाने, ऑफिस में
किसी जगह भी काम दिला दो
इतना लंबा चौड़ा है साम्राज्य तुम्हारा
तीनों लोकों में फैला है
एक प्रार्थना है पर, हे प्रभु !
इसी लोक में कोई काम दिलाना !
शपथ तुम्हारी लेकर कहता हूँ
विश्वास करो, प्रभु !
सचमुच मैं कमनिस्ट नहीं हूँ
गंदे कपड़ों, बिखरे बालों से मत चौंको
ग़लत न समझो
चाहो भले तलाशी ले लो
मेरे पास नहीं है कोई
लाल रंग की चीज़
खून के सिवा,
और वह भी अब दिन दिन
पीला ही पड़ता जाता है !
सच कहता हूँ :
हँसिया और हथौड़ा मैंने
छूकर कभी नहीं देखा है
दया करो प्रभु !
मुझको कोई काम दिला दो !