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एक भिण्डी / गणेश पाण्डेय

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यह जो छूट गई थी
थैले में अपने समूह से
अभी-अभी अच्छी भली थी
अभी-अभी रूठ गई थी
एक भिण्डी ही तो थी ।

और एक भिण्डी की आबरू भी क्या
मुँह फेरते ही मर गई ।