भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक युग / प्रेरणा सारवान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक क्षण
एक युग होता है
कभी - कभी
मेरे जीवन में
जब सन्नाटा
छा जाता है
सम्पूर्ण सृष्टि में
मैं विस्मृत कर देना
चाहती हूँ सब कुछ
तो स्मरण हो आते हैं
पूर्वजन्म
वही तुम्हारा
युगों पुराना दण्ड
जो मैं आज भी
भोग रही हूँ
वही प्रतीक्षा के
बर्फीले पहाड़ पर
विरह - वेदना में
जलते रहने का
अभिशाप
और रूप बदल - बदल कर
तुम्हारा बार - बार
मुझे छलना
थम कर
युग बन जाता है।