एक रोज़ मैंने देखीं मछलियाँ अनगिनत
उनमें दमक रहे थे अनेकों सूर्य
कुछ रोज़ बाद मैंने देखा भदरंग एक जाल
मछलियाँ अब नहीं थीं
बस जल था रंगहीन और उदास होता
रचनाकाल : जुलाई 1991
एक रोज़ मैंने देखीं मछलियाँ अनगिनत
उनमें दमक रहे थे अनेकों सूर्य
कुछ रोज़ बाद मैंने देखा भदरंग एक जाल
मछलियाँ अब नहीं थीं
बस जल था रंगहीन और उदास होता
रचनाकाल : जुलाई 1991