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एक लहर तीर से लिपटकर बोली -- / गुलाब खंडेलवाल
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एक लहर तीर से लिपटकर बोली --
'क्या मुझे पुन: सागर में लौट जाना होगा!
इस मधुर आलिंगन से वंचित होकर
शेष जीवन फिर करवटें बदलते हुए बिताना होगा!'
तीर कुछ उत्तर दे, इसके पूर्व ही
विदा की वेला आ गयी,
प्रश्न होठों पर लिये-लिये ही
प्रश्नकर्त्री शून्य में समा गई!