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एक लोकगीत पढ़ते हुए / ज्ञान प्रकाश चौबे
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चूल्हे में आग जले
जाड़े में रात रे !
आँखों में नींद पके
बटुली में भात रे !
सैंया मोरा राजा बने
मैं मैने की पाँख रे !
हँसती मैं जागूँ सोऊँ
रोए मोरी आँख रे !
मन मोरा पिसा जाय
मैं पिसू जाँत रे !
कोई तोड़े नशा मोरा
कोई तोड़े खाट रे !
सब कोई चाहे
बनूँ मन की मीत रे !
बर्तन सब ढ़ो-ढ़ो बाजे
किसी में न प्रीत रे !
काहू की जीत बनूँ
काहू की हार रे !
बिटिया मोरी मुझसे पूछे
माँ कैसी रीत रे !