Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 23:46

एक शे’र३ / अली सरदार जाफ़री


एक शे’र३

आस्तीं ख़ून में तर प्यार जताते हो मगर
क्या ग़ज़ब करते हो ख़ंजर तो छुपाओ साहब