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एक सच के मायने सौ कर लिए मुमकिन जनाब / विनय कुमार
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एक सच के मायने सौ कर लिए मुमकिन जनाब।
झूठ को भी आपसे आने लगी है घिन जनाब।
है ज़रा सी जान पर डरती नहीं हैं आपसे
आप में दुखती हुई रग़ खोज लेगी पिन जनाब।
दर्द सब ज़ख्मी ग़ज़ालों के पके, पत्थर हुए
अब ग़ज़ल नाजुक नहीं है अब नहीं कमसिन जनाब।
आपने जिनको उतारा था ज़हर के घाट कल
आज उनको दूध जब बातें हुईं नागिन जनाब।
चांद क्या टेढ़ा करेगा मुंह हमारे सामने
ढल गया है आज दिल में एक उजला दिन जनाब।
ख़ुदपरस्ती के शज़र पर है सियासत की लतर
ख़ूब ग़ुल खिलते हैं फल आते नहीं लेकिन जनाब।