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एक सवाल / वीरा

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तुम क्यों

हर बार

अपनी मुट्ठी में

भींच लेते हो

अपने फेफड़ों की

पीली-सी साँस?

क्या तुम

हरे पत्तों की

झूमती हवा के सामने

अपनी हथेली

खुली नहीं

रख सकते?


(रचनाकाल : 1978)