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एक सुवाल आंटो / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
आभो नीं देवै
पाणी रो छांटो
पण
मरूधर समझ नीं आयो
थारी रचता रो आंटो ।
कींकर टोरै उमर
खेजड़ी
कैर
अर बोअटी रक
एक निबळो सो कांटो !
थां खातर तो
सफा सोरो है
पण
म्हारै खातर दोरो है
ओ एक सुवाल आंटो ।