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एह चाँदनी रात में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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एह चाँदनी रात में
हमार प्राण जाग रहल बा।
आज तहरा पास में
हमरा जगह मिली कि ना?
तहरा अपूर्व मुख के
हम उत्सुक होके
अपलक नैनन से
आज निहार सकेब कि ना?
हमार लोर भरल गीत
तहरा चरनन के चूमे के
बार-बर छूए के
अवसर आज पाई त?
डर लागता
जे आपन देहल दान
कहीं तू लौटा मत ल!
एही से हम आज
माटी में मुँह लुका के पड़ल बानीं।
साहस करके
तहरा चरन तल में
अपना के ध नइखीं देत
काहे कि हमरा डर लागता!!
तूं अगर हमरा लगे आके
हमार हाथ ध के उठे के कहऽ