ए-नारी-(दो चित्र) पहला चित्र / उर्मिल सत्यभूषण
वे एक भद्र महिला हैं
सौम्य, सुन्दर, सुशील
उम्र की दहलीज से
झांकता बुढ़ापा है
पचास के सालों पर
पैंतीस का दावा है।
उम्र को झुठलाती हुई
इतराती हुई चलती हैं
मंद-मंद मुस्काती हुई
धवल दंत पंक्ति
दिखाती हुई
गजगामिनी सी आती हैं
खुशबू फैलाती हैं
उम्र की लकीरों पर
मेकअप की परतें हैं
रक्तिम कपोल और
होंठों की लाली पर
जीने की शर्तें हैं।
गोरा रंग दिपता है।
कानों में हीरों से
मुखचन्द्र चमकता है।
वैसे वे कामकाजी
महिला हैं-किन्तु
इच्छा से आती हैं
इच्छा से जाती हैं।
नौकरी तो पक्की है
इसलिये घबराती नहीं
इधर-उधर बैठकर
खूब बतियाती हैं
दिल बहलाती हैं।
दफ्तर में आना-जाना
शगल है, मेला है
झंझट न झमेला है।
बेशुमार साड़ियां
किसको दिखायें वे
अफसर की बीवी हैं
किसको बतायें वे
किस पर अपना
रौब जमायें वे
अपने दबदबे से
आतंकित करती सी
मोहक व्यक्तित्व से
आकर्षित करतीं सी
शौहर की शौर्य-गाथा
आकर दुहराती हैं
इठला कर, इतराकर
वापिस चली जाती है।