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ऐसा नशा चढ़ा है मुझको यार नशीले सावन में / अमरेन्द्र

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ऐसा नशा चढ़ा है मुझको यार नशीले सावन में
कर बैठा हरजाई से ही प्यार नशीले सावन में

पीने से इन्कार किया है भादो से आषाढ़ तलक
मुझसे किया न जाए अब इन्कार नशीले सावन में

आँखों में ही बस गया सावन झरझर-झरझर झरता है
दिल दे बैठा क्यों तुमको बेकार नशीले सावन में

बिन पूछे जबकि यह सावन छेड़ रहा है हमको तो
छेड़ेंगे हम तुमको भी सौ बार नशीले सावन में

देख हमें क्या जाने दिल ही आ जाए वो इसीलिए
बैठे हुए हैं करके सौ दीवार नशीले सावन में

क्या जाने कब विरह की मारी आ जाए हमसे मिलने
खोले हैं हमने अपने सब द्वार नशीले सावन में

सावन में सब पढ़ने बैठे पिय की पाती उलट-पुलट
अमरेन्दर बैठा पढ़ने अखबार नशीले सावन में ।