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ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं / हरिवंशराय बच्चन

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ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं

जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?

मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
बापू ने सबको
गिन-गिनकर
अवगाह लिया।


बापू की छाती की हर साँस तपस्‍या थी

आती-जाती हल करती एक समस्‍या थी,

पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
बापू ने जीवन
के क्षण-क्षण को
थाह लिया।


किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?

किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?

किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?

बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
जीने की किमत कर वसूल पाई-पाई,
मरने का भी
बापू ने मूल्‍य
उगाह लिया।