भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसी कहा चूक भई मेरी / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग पूर्वी, तीन ताल 22.8.1974
ऐसी कहा चूक भई मेरी।
जो मैं तुम बिनु यों बिललाऊँ सदा-सदा की तेरी॥
दीखत और न चाह हिये, बस यही ललक नित मेरी।
एक बार हूँ दरस देहु तो नयनन होय निवेरी<ref>निवृत्ति, शान्ति</ref>॥1॥
प्यारे! रह्यो न और आसरो, सभी भाँति मैं तेरी।
फिर काहे तुम सों वंचित ह्वै डोलूँ यों भटभेरी<ref>व्यर्थ भटकती</ref>॥2॥
दया करहु हे दयानाथ! मैं सदा-सदा की चेरी।
तुव करुना ही है मम जीवन, यही जीविका मेरी॥3॥
है न चैन दिन-रैन मैनने करी दुरदसा मेरी।
मन में आग लगाय हाय! यह जारत मनहुँ अहेरी॥4॥
तुम ही कृपा करहु तो प्यारे! यासों होय निबेरी।
नतरु वृथा जरि-जरि ही इक दिन रहहि राखकी ढेरी॥5॥
शब्दार्थ
<references/>