भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसी री सुहाग मैंने घोर घोर गारौ / बुन्देली
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ऐसी री सुहाग मैंने घोर घोर गारौ।
सुहाग की क्यारी उनके बाबुल ने लगाई।
सो सींचे मैया रानी सिंचावै सिया जानकी।
टीका रोरी मंे छवि लागी,
माहुर मेंहदी में छवि लागी।
अनवट बिछया में छवि लागी।
ऐसो री सुहाग मैंने घोर-घोर गारौ।
सुहाग की क्यारी उनके काकुल ने लगाई।
सो सींचे काकी रानी सिंचावै सिया जानकी।
ऐसों री सुहाग मैंने...