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ऐसे तट हैं - क्यों इन्करें / हरीश भादानी

ऐसे तट हैं --
      क्यों इन्कारें
      किरणें खीज
      खुरच जाती हैं
माटी पर दो - चार दरारें

   ऐसे तट हैं --
      क्यों इन्कारें

      भरी - भरी - सी
      सांस - झील पर
तन-मन प्यासे पंख पसारें

   ऐसे तट हैं --
      क्यों इन्कारें
      परदेशी
      बुद बुदे देखने
कंकर फैंकें, थकन उतारें

   ऐसे तट हैं --
      क्यों इन्कारें