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ऐसे भी हैं लोग देश को बेच चैन से सोते हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ऐसे भी हैं लोग देश को, बेच चैन से सोते हैं।
घायल कर के पाँव स्वयं ही, अंत समय में रोते हैं॥
हैं प्रतिदान नहीं दे पाते, धरती के उपकारों का
अपनी नफ़रत के ही वे तो, बीज हमेशा बोते हैं॥
प्रकृति वधू कर रही संतुलन, अपने सारे तत्वों का
उसके सभी प्रयासों को हम, नाकारे बन धोते हैं॥
जब भी करवट समय बदलता, सुख दुख के सपने देता
हर्षित होते सुख-स्वागत में, दुख में नयन भिगोते हैं॥
थोड़े से वेतन के बदले, प्राणों के पण जो जूझा
उसी वीर बलिदानी के घर, बच्चे भूखे सोते हैं॥
नाम देश के कर दीं साँसें, घर परिवार भुला बैठे
लिखे गये इतिहास पृष्ठ पर, नाम उन्हीं के होते हैं॥
दे अनुपम सम्मान शहीदों, को सारे भारतवासी
नयन बिंदु श्रध्दा सुमनों से, आँचल सदा सँजोते हैं॥