भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसे / केशव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसे नहीं होता
कुछ भी
एक पत्ता तक
नहीं
झरता
कहा हुआ भी
अनसुना रह जाता है
हवा का एक झोंका तक
बिन छुए
बगल से गुजर जाता है

वैसे
खामोशी में
सब कुछ हो जाता है
अनकहा
कहा बन जाता है
सोई हुई पृथ्वी
जो कई सदियों से दफन
उसके सीने में।