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ऐ-काश के वो मेरा कभी हमसफर होता / मोहम्मद इरशाद
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ऐ-काश के वो मेरा कभी हम हमसफर होता
मैं राह की दुश्वारियों से बाख़बर होता
अच्छा हुआ महफिल से वो जो रूठ के गया
वरना ये तमाशा यहाँ पे रात भर होता
गर आप ना आते तो जहाँ दश्त ही रहता
ये आदमी भी अब तलक जानवर होता
इंसान न बन जाते वो सारे आदमी
बातों में अगर तेरी ज़रा सा असर होता
‘इरशाद’ तेरा साथ मुझको मिलता गर सुनो
फिर देखते कैसा सुहाना ये सफर होता