ऐ मेरे देश के वीर बाँके सुअन / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
ऐ मेरे देश के वीर बाँके सुअन !
है नमन्, है नमन्, है नमन्, है नमन्।
बाढ़ आयी तो तुम भिड़ गये बाढ़ से,
अंधड़ों में तुम्हीं ने सम्भाला हमें।
भूमि काँपी या ज्वालामुखी जब फटे
आग से भी तुम्हीं ने निकाला हमें॥
लौहमय हे पुरुष ! तुम विहँसते चले,
हर घड़ी सीस पर बाँध अपना कफन।
गिरि हिमालय की हिम से ढँकी चोटियाँ
मुस्कुरातीं तुम्हारे चरण चूमकर।
घाटियों, मरुथलों, बीहड़ों, बंजरों,
सागरों ने बुलाया तुम्हें झूमकर॥
जान अपनी हथेली पर रखकर सदा
तुम लुटाते रहे हर घड़ी नौरतन।
शत्रु जब भी चढ़ा तुमने तोड़ी कमर,
जीत करती रही बस तुम्हारा वरण।
आत्मरक्षा में आयुध तुम्हारे उठे
रण का तुमने बताया नया व्याकरण॥
स्वर्ग सा है सुरक्षित हमारा वतन।
है नमन्, है नमन्, है नमन्, है नमन्।