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ओकरा कोय सनकैने छै / कैलाश झा ‘किंकर’

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ओकरा कोय सनकैने छै।
गोरकी भूतनी धैने छै।।

भोरकोॅ वादा साँझ टुटै छै,
रोज जुटै छै, रोज छुटै छै,
कखनो हाँ-हाँ, कखनो ना-ना
कखनो घरवाली केॅ कुटै छै।
लाज शरम तेॅ वर्षों पहिने
धरती मेॅ दफनैने छै।।

बात-बात पर लाठी-सोटा,
माथा भेलै भैंस सेॅ मोटा,
बेटियोॅ केॅ मारै बेदर्दी
दमसाबै छै पकैड़ केॅ झोटा।
माय-बाप केॅ बैंट-चीट के
पहिने सेॅ सलटैने छै।

दुधमुहाँ बेटा काने छै,
गोदी लेली ऊ हानै छै,
बाप लिखै छै चिट्ठी उन्ने
केकरा सेॅ के जानै छै।
घर तेॅ लागै छै बथान सन
तैयो ऊ अनठैने छै।