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ओक भरके / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
11
नैनों की झील
पी गए जो अधर,
बुझी है तृष्णा।
12
आओ तो कभी
जगाओ सोई झील
काँपें तरंगें।
13
निर्जन वन
प्रतीक्षारत झील
तट हैं मौन ।
14
झील पावन
कर गया विषैला
किसी का मन ।
15
झील -दर्पण
तिरते नील घन
केश सँवारें
16
बैठ किनारे
किसने पढ़ा भला
झील का मन !
17
ओक भरके
पिया निर्मल नीर
लजाई झील ।
18
झंकृत हुए
मन-प्राण झील के
होठों से छुआ।
19
डबडबाए
झील-से भीगे नैन
नींद ले उड़े।
20
झील में झाँका
अश्रुजल टपके
सिसकी उठी।