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ओळखाण / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
पग-पग
नूंवा दरसाव
थे जिका दिखावो हो
बै म्हैं कदैई लारै छोड़ दिया
अबै नीं हुय सकै बांरी कुचमाद रो
म्हारै ऊपर असर
राई नैं पहाड़
तिल नैं ताड़
बणावण री जुगत थे करो
खुद री जमीन हुवै
तो ओळखाण मिलै
आभै माथै कदैई पग नीं टिकै
चालणो है तो करणो ई पड़सी
बतावणो ई पड़सी
आपो-आपरै हुवणै रो साच!