मैं बस एक ओस की बूँद 
तुम प्राची की प्रत्यंचा खींचते भास्कर 
भले ही वाष्पित हो जाऊँ तुम्हारे छूते ही 
पर मिलना अवश्य 
तुम्हारे स्पर्श से मैं आलोकित हो उठती हूँ ।
मैं बस एक ओस की बूँद 
तुम प्राची की प्रत्यंचा खींचते भास्कर 
भले ही वाष्पित हो जाऊँ तुम्हारे छूते ही 
पर मिलना अवश्य 
तुम्हारे स्पर्श से मैं आलोकित हो उठती हूँ ।