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ओस है, लू भरी लहर भी है / श्याम कश्यप बेचैन

ओस है, लू भरी लहर भी है
यह सुबह भी है, दोपहर भी है

सब्ज़ रहते हैं खेत ज़ख्मों के
दिल में शायद कोई नहर भी है

हार के वास्ते लड़ा हूँ मैं
जंग में जीतने का डर भी है

उसकी शीरीं जुबां पे मत जाना
हाँ वो मीठा है, पर जहर भी है

लोग कहते हैं जिसको मेरा घर
उस तबेले में, मेरा घर भी है

छू ले सबके दिलों को, जोडे़ भी
इससे बढ़ कर कोई हुनर भी है